भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तू न तान की मरोर
देख, एक साथ चल,
तू न ज्ञान-गर्व-मत्त--शोर देख, देख साथ चल। 
सूझ की हिलोर की
हिलोरबाज़ियाँ न खोज,
तू न ध्येय की धरा--
गुंजा, न तू जगा मनोज।
जल, पवन, अनंग संग
भूमि आसमान का चढ़े
अर्थहीन अर्थ-हीन रंग। 
बात वह नहीं मनुष्य
देवता बना फिरे,
था कि राग-रंगियों--
घिरा, बना-ठना फिरे।
बात वह नहीं कि--
बात का निचोड़ वेद हो,
बात वह नहीं कि-
स्वर्ग की तलाश में
न भूमि-लोक भूल देख,
खींच रक्त-बिंदुओं--भरी , हज़ार स्वर्गस्वर्ण-रेख। 
बुद्धि यन्त्र है, चला;
न बुद्धि का गुलाम हो।
सूझ अश्व है, चढ़े--चलो, कभी शाम हो।
शीश की लहर उठे--फसल कि , एक शीश ले।दे।
पीढ़ियाँ बरस उठें
हज़ार शीश शीश ले।
भारतीय नीलिमा
जगे कि टूट-टूट बंदस्वप्न सत्य हों, बहार--
गा उठे अमंद छन्द।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits