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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
ज़िन्दगी ले जा रही है कि मौत
मेरा समय कि तुम्हारा अकेलापन
कोई न कोई तो ले जा रहा है मुझे ज़रूर
ज़िन्दगी भटकाएगी पहले की तरह
मौत अलविदा कहने पर मजबूर करेगी सबसे
मेरा समय बचे हुए कामों पर लगा देगा मुस्तैदी से
तुम्हारा अकेलापन उदासियों की
एक ऐसी दुनिया के हवाले कर देगा
सब कुछ होगा जहाँ तुम्हारे अलावा
कैसी होगी
उदासियों की वह दुनिया
तुम्हारे बगैर
तुम्हारे अकेलेपन की याद दिलाती ?
'''रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा'''
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
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ज़िन्दगी ले जा रही है कि मौत
मेरा समय कि तुम्हारा अकेलापन
कोई न कोई तो ले जा रहा है मुझे ज़रूर
ज़िन्दगी भटकाएगी पहले की तरह
मौत अलविदा कहने पर मजबूर करेगी सबसे
मेरा समय बचे हुए कामों पर लगा देगा मुस्तैदी से
तुम्हारा अकेलापन उदासियों की
एक ऐसी दुनिया के हवाले कर देगा
सब कुछ होगा जहाँ तुम्हारे अलावा
कैसी होगी
उदासियों की वह दुनिया
तुम्हारे बगैर
तुम्हारे अकेलेपन की याद दिलाती ?
'''रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा'''
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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