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बेर / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>काँटों की बहुतायत के कारण बेर सुख्यात या
कुख्यात है। बेर में फल भी उसी प्रकार अधिक
होते हैं जिस प्रकार काँटे। काँटों के कारण ही
रहीम नें कहा है - कहु रहीम कैसे निभै बेर
केर को संग, ये डॉलत रस आपने उन के फाटत
अंग। केले के पत्ते को ही उस का अंग कह सकते
हैं। बेर की ड़ालें यदि केले के पत्ते से लगें तो
वे फट कर रहेंगे। कौन नहीं जानता कि केले के
पत्ते पवन के परस से ही फटा करते हैं।

वनवासिनी शबरी ने राम के स्वागत में बेर
के फल ही चखे थे। वन में और भी अच्छे फल रहे
होंगे। शायद शबरी बेर के वन में रहती हो और उन्ही को
खा कर जीवित हो। शबरी नें एक नहीं, अनेक
स्वाद के बेर, राम और लक्षमण को दिये। जाहिर है कि
बेर की अनेक जातियाँ रही होंगी जैसे आमिं की
आजकल हैं।

पक कर मूलभूमि में पड़े हुए बेरों को बीन बीन
कर अनेक जगह लड्डू बनाने का चलन है। बेर
सर्व सुलभ फल है। आज भी बेर सबकी सेवा में
तत्पर है।

27.12.2002</poem>
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