भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा' इस मिसरे में 'कहाँ' क़ाफ़िया है और 'तन्हा' रदीफ़
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें तन्हा-कहाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियॊं सदियों तक छोड़ जाएंगे जाएँगे ये जहाँ तन्हा।