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Kavita Kosh से
सो गया।
:::तहखाने से उठकर :::: दो पाँव ::: घूमते हैं- ::: गली ::: बस्ती ::: बाज़ार ::: अटारी ::: चौबारा ::: दालान ::: चबूतरा ::: चौपाल ::: सड़क ::: कमरे ::: पहाड़ ::: हाट ::: जंगल। ::: भटकते हैं- ::: हरियाली ::: पानी ::: फूल ::: चहल-पहल ::: विश्रांति ::::: जाने क्या-क्या खोजते।
दो पावों के ऊपर
बाहर नहीं आ सकते।
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