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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती
निर्दोष और निर्विकार है जो
किसी भी शरीर में रहे
किसी भी रूप में
किसी के पास
चिंता क्यों होती है उसको लेकर
क्यों होती है शंका अपने अहित की?
हित ही सधा न हो जिससे
कैसे करेगा अहित?
किसी भी शरीर में
किसी भी रूप में
किसी के भी पास रहकर
है तो निर्दोष
है तो निर्विकार
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती
निर्दोष और निर्विकार है जो
किसी भी शरीर में रहे
किसी भी रूप में
किसी के पास
चिंता क्यों होती है उसको लेकर
क्यों होती है शंका अपने अहित की?
हित ही सधा न हो जिससे
कैसे करेगा अहित?
किसी भी शरीर में
किसी भी रूप में
किसी के भी पास रहकर
है तो निर्दोष
है तो निर्विकार
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
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