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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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तुम अपवाद हो इसलिए
अपने आप से करता मेरा विवाद हो,
सोचता मैं कोई शब्द जो फुसलादे
मेरे साथ चलती छाया को
कुछ देर कि मैं छिप जाऊँ किसी मोड़ पे,
देखूँ होकर अदृश्य
अपने ही जीवन के विवाद को
रिक्त स्थानों के संवाद में.
'''रचनाकाल: 26.11.2005</poem>