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Kavita Kosh से
जैसे कहता हो-<b>
देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ,<br>तुम भी हँसो,<br>उदासी के लिए यहाँ जगह नहीं है।<br>अकेले ही रहकर जीना सीखो,<br>यहाँ आत्मीयता और संवेदना का,<br>कोई मूल्य नहीं?<br>यहाँ सब कुछ है,<br>पर मानवता नहीं,<br>आप तड़पेंगे ,रोयेंगे,<br>सर पीट-पीट कर चिलायेंगे<br>,फिर भी आपके पड़ोसी को,<br>सुनाई नहीं पड़ेगा ।<br>क्योंकि यहाँ लोगों के,<br>कान नहीं होते,<br>मदद के नाम पर,<br>पुलिस आयेगी,पड़ोसी नहीं<br>इंसानियत क्या है?<br>वे समझते नहीं <br> कितना है ज़ज़्बातों का अभाव यहाँ?<br>कितना है बनावटीपन यहाँ?<br>अपने देश में हम लड़ते हैं,झगड़्ते हैं,<br>वक़्त पड़ने पर हम-<br>दूसरों के साथ रोते हैं,हँसते है,<br>मदद करने के लिए तड़पते हैं,<br>यही आत्मीयता और स्नेह तो,<br>मेरे देश की खासियत है,<br>जिसके लिए -<br>मैं विदेश में तड़पती हूँ ।<br/poem>