भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavitaKKCatNavgeet}}
<poem>
ताल भर सूरज--—
बहुत दिन के बाद देखा आज हमने
और चुपके से उठा लाए--—जाल भर सूरज!
दृष्टियों में बिम्ब भर आकाश--—
छाती से लगाए
घाट
घास
पलाश!
तट पर खड़ी बेला
निर्वसन
चुपचाप
हाथों से झुकाए--—डाल भर सूरज!
ताल भर सूरज...!
</poem>