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|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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आज जीवन में सफलता की मुझे आहट मिली है !
 
::आज तो आराधना का
::इस हृदय की साधना का
::फल मिलेगा, बल मिलेगा,
आज तो पतझार में अगणित नयी कलियाँ खिली हैं !
 
::उठ रही हैं मुक्त लहरें,
::भाव रोदन के न ठहरें,
::पास यह गन्तव्य आया
हार का बंदी नहीं, जीत मुझसे आ हिली है !
 
::मिट चुकी है रात काली,
::छा रही है आज लाली,
::हो रहा कलरव मनोहर
जागरण-बेला यही है, प्राण ने पहचान ली है !
 '''रचनाकाल: 1947</poem>
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