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दीप / अंतराल / महेन्द्र भटनागर

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|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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 :दीप, तुम्हें तो जलना होगा !
:नभ के अगणित टिमटिम तारे,
::बारी-बारी से सो जाएंगे,
::सपनों का संसार बसाए
:::दीप, तुम्हें पर जलना होगा !:::
:तूफ़ान मचेगा जब जग में,
:गहरा तम छाएगा मग में,
::जब हिल-हिल जाएंगे भूधर,
::डोल उठेगा भूतल सारा
:::दीप, तुम्हें तब जलना होगा ! '''रचनाकाल: 1945</poem>
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