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|संग्रह=हवाएँ चुप नहीं रहतीं / वेणु गोपाल
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हवाओं ने सरापा समझा
अंधेरे को। झूठ नहीं कहा था उसे। लेकिन
(रचनाकाल : 23.01.1976)
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