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{{KKRachna
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
}}
<poem>हादसा-दर-हादसा-दर-हादसा होता हुआ
क्या कभी देखा किसी ने आसमाँ रोता हुआ
मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर
सोच की बैसाखियों अर पर ज़िस्म को ढोता हुआ
एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें