भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
}}[[Category:गज़ल]]<poem>
जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िन्दगी की दास्ताँ रह जाएगा
वरना घुट कर सबके भीतर ये धुआँ रह जाएगा।
ये धुँधलके हैं समय के तू अभी परवाज़ कर
फट गया गर यूँ ही बादल, तू कहाँ रह जाएगा।