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Kavita Kosh से
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
निगाहें आ गई गईं परछाइयों तक तुम नहीं आये ।
न शमादा हैं शम्म'अ है न परवाने हैं ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये ।
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