भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
क्या किया मैंने! बहाया आदमी का खून!"
खुल गई है शुभ्र मन की आँख,
खुल गई है चेतना की पाँख;
प्राण की अन्तःशिला पर आज पहली बार,
जागकर करुणा उठी है कर मृदुल झनकार।
आँसुओं में गल रहे हैं प्राण
खिल रहा मन में कमल अम्लान।
 
गिर गया हतबुद्धि - सा थककर पुरुष दुर्जेय,
प्राण से निकली अनामय नारि एक अमेय।
अर्द्धनारीश्वर अशोक महीप;
नर पराजित, नारि सजती है विजय का दीप।
 
पायलों की सुन मृदुल झनकार,
गिर गई कर से स्वयं तलवार।
वज्र का उर हो गया दो टूक,
जग उठी कोई हृदय में हूक।
 
लाल किरणों में यथा हँसता तटी का देश,
एक कोमल ज्ञान से त्यों खिल उठा हृद्देश।
खोल दृग, चारों तरफ अवलोक,
सिर झुका कहने लगे मानी महीप अशोक:--
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits