भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} <poem> सुबह सुबह सूरज के पास बैठी है जि…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
<poem>
सुबह सुबह
सूरज के पास
बैठी है जिंदगी उदास
जाने क्यों?
जीवन के
सागर में
तैर रहे मछली-से दिन
मछुए की
बंसी के काँटे-सा
अनजानी संध्या का छिन
अंबर के कागज के पास
बैठी हैं स्याहियाँ उदास
जाने क्यों ?
</poem>