भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
दिल्ली राजपुरी भारत की, भारत का अपमान।
:ओ समता के वीर सिपाही,:कहो, सामने कौन अड़ी है?:बल से दिए पहाड़ देश की:छाती पर यह कौन पड़ी है?:यह है परतंत्रता देश की,:रुधिर देश का पीनेवाली;:मानवता कहता तू जिसको:उसे चबाकर जीनेवाली।:यह पहाड़ के नीचे पिसता:हुआ मनुज क्या प्रेय नहीं है?:इसका मुक्ति-प्रयास स्वयं ही:क्या उज्ज्वलतम श्रेय नहीं है?:यह जो कटे वीर-सुत माँ के:यह जो बही रुधिर की धारा,:यह जो डोली भूमि देश की,:यह जो काँप गया नभ सारा;यह जो उठी शौर्य की ज्वाला, यह जो खिला प्रकाश;यह जो खड़ी हुई मानवता रचने को इतिहास;कोटि-कोटि सिंहों की यह जो उट्ठी मिलित, दहाड़;यह जो छिपे सूर्य-शशि, यह जो हिलने लगे पहाड़।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits