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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…
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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पेट पर रखा गया पत्थर
दिल पर पहाड़
मन पर थोप दी गई बादलों की पर्त
भीगी आँखों से देखा गया सपना
धार-धार हुआ
हुआ बूँद-बूँद
न सीप का मुँह खुला
न बाँस की गाँठ
हवा की झोली में गया सब कुछ
पत्थर बनने के लिए दुबारा
बनने के लिए पहाड़ और बादल।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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पेट पर रखा गया पत्थर
दिल पर पहाड़
मन पर थोप दी गई बादलों की पर्त
भीगी आँखों से देखा गया सपना
धार-धार हुआ
हुआ बूँद-बूँद
न सीप का मुँह खुला
न बाँस की गाँठ
हवा की झोली में गया सब कुछ
पत्थर बनने के लिए दुबारा
बनने के लिए पहाड़ और बादल।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा
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