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Kavita Kosh से
म्हारी गुदली हथेली मं छालो पड़ गयो
मधुआ म्हारो जी!
मैं पलो नहीं काटूँ सा
घास नहीं खूदे से महाँ महं सूँ
परले नहीं कटे से
म्हारी भोली सूरत
काली पड़ गी
मधुआ म्हारो जी
रखड़ी भी ले लो थे
थारी बेगडी भी ले लो
म्हाने जेपुरिया लहरयो मंगवादोमधुआ म्हारो जी! जुटड़ा भी ले लेलो जी
थारा बिछुआ भी ले लो
म्हाने मधुआपुर सूं घाघरा मंगवादो
मधुआ म्हारो जी !
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