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Kavita Kosh से
बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप,
:पर कितने एकान्त भाव से, कितने शांत और चुपचाप!
है बिखेर देती वसुंधरा, मोती, सबके सोने पर,
:रवि बटोर लेता है उनको, सदा सवेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी, संध्या को दे जाता है,
:शून्य श्याम-तनु जिससे उसका, नया रूप झलकाता है।
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