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17:08, 1 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सिर्फ़ कागज़ पर
नहीं लिखी जाती है कविता
किसान लिखता है
ज़मीन पर...
शिल्पकार
पत्थर... मिट्टी...
बढ़ई
लकडी़ पर...
स्त्री घर के कोने - कोने में
रचती है कविता...
माँ की हर लोरी
बच्चे की किलकारी
तुतली बतकही
घरनी की चुपकही
प्रेमियों की कही-अनकही में
होती है कविता...
पौधे के पत्ते-पत्ते
फूल की हर पंखुरी
तितली के रंगीन परों पर
इठलाती है कविता...
गौर से सुनो तो,
कोयल की कूक
पपीहे की हूक
पक्षी की चहचहाहट
घास की सुगबुगाहट
भौरों की गुनगुनाहट में भी
लजाती... मुस्कुराती
खिलखिलाती है कविता
सिर्फ़ कागज़ पर
नहीं लिखी जाती है कविता...।
</poem>