भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए …
मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए

दरिया जो दरमियान था,गहरा न था मगर
पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए

आया ख़याले-आशियाँ उड़ते हुए मुझे
फैले हुए हवा में,जो पर थे सिमट गए

मेरा फ़साना तुमने सभी को सुना दिया
वो दर्दो-ग़म जो मेरे थे,हिस्सों में बंट गए

नींदें उचट गईं मेरी आँखों से और फिर
ये हुआ कि ख़्वाब-सलौने उचट गए

देखा जब उसको सामने,रौशन हुए चराग़
दिल के तमाम रास्ते फूलों से पट गए