भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: == भेंट <poem>वह सुबह पाच बजे उठाकर मार्निंग वाक पर जाती है मुझे अच्छ …
== भेंट
<poem>वह सुबह पाच बजे उठाकर
मार्निंग वाक पर जाती है
मुझे अच्छ लगता है
देर तक सोना
वह अलसुबह
स्कूल चली जाती है पढ़ाने
मेरे आफिस का समय
दस बजे का है
मैं देर से लोटता हूँ घर
उसके सोने का समय हो जाता है
एक दूसरे को पा लेने के भ्रम में
खो गए हैं हम
एक दूसरे के लिए
इसी क्रमाक्रम के बीच अचानक
हाथ पकड़ लेना एक दूसरे का
या अबोध बिटिया की
किसी बात पर
साथ-साथ खिलखिला उठना
बिजली की चमक की तरह होता है
जिसमे , कुछ पल के लिए
एक दूसरे को हम
फिर से दूंढ लेते हैं </poem> ==