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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल }} टुकदम-टुकदम आती चुहिया आंखें गोल …
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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
}}
टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-मुस्तीह
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती.
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....
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|रचनाकार=कुमार मुकुल
}}
टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-मुस्तीह
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती.
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....