भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किशन सरोज }} <poem> धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=किशन सरोज
}}
<poem>
धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन
बांचते हम रह गए अंतर्कथा
स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
ले गया चुन कर कँवल कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन
जंगलों का दुःख तटों की त्रासदी
भूल सुख से सो गयी कोई नदी
थक गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
और झीने पाल-सा हिलता रहा मन
तुम गए क्या जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी रह गया केवल धुआँ
गुनगुनाते हम भरी आँखों फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=किशन सरोज
}}
<poem>
धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन
बांचते हम रह गए अंतर्कथा
स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
ले गया चुन कर कँवल कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन
जंगलों का दुःख तटों की त्रासदी
भूल सुख से सो गयी कोई नदी
थक गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
और झीने पाल-सा हिलता रहा मन
तुम गए क्या जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी रह गया केवल धुआँ
गुनगुनाते हम भरी आँखों फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन
</poem>