भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहो रामजी / शांति सुमन

1,415 bytes added, 18:32, 26 फ़रवरी 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह= एक सूर्य रोटी पर / शांति सुमन …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह= एक सूर्य रोटी पर / शांति सुमन
}}
<poem>

कहो रामजी, कब आये हो

अपना घर दालान छोड़कर
पोखर-पान-मखान छोड़कर
छानी पर लोकी की लतरें
कोशी-कूल कमान छोड़कर

नये-नये से टुसियाये हो ।

गाछी-बिरछी को सूनाकर
जौ-जवार का दुख दूनाकर
सपनों का शुभ-लाभ जोड़ते
पोथी-पतरा को सगुनाकर

नयी हवा से बतियाये हो

वहीं नहीं अयोध्या केवल
कुछ भी नहीं यहाँ है समतल
दिन पर दिन उगते रहते हैं
आँखों में मन में सौ जंगल

किस-किस को तुम पतियाते हो

जाओगे तो जान एक दिन
बाजारों के गान एकदिन
फिर-फिर लौटोगे लहरों से
इस इजोत के भाव हैं मलिन

अभी सुबह से सँझियाए हो ।
160
edits