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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुम…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुमन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शव किसी युवती का है
इसलिये भीड़ देखनेवालों की है
उठानेवालों की नहीं
एक-दूसरे का मामला बताकर
गाँव और रेलपुलिस का टालमटोल
कोई नई बात नहीं
जहाँ वह मिली है गटर में
वहाँ सैकड़ों किस्सों के सैंकड़ों मुँह
लिखी है जाने कितनी कहानियाँ
उसके सिरहाने-पैताने
उसकी आत्मा में ईश्वर नहीं था
या उसकी आत्मा तक नहीं गया था ईश्वर
वह सिर्फ देह थी, देह के साथ रही
देह लेकर मर गई
मनुष्य होने की आदिम परिभाषा
पर भी पत्थर रख गई ।
</poem>
10 मई, 2001
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|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुमन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शव किसी युवती का है
इसलिये भीड़ देखनेवालों की है
उठानेवालों की नहीं
एक-दूसरे का मामला बताकर
गाँव और रेलपुलिस का टालमटोल
कोई नई बात नहीं
जहाँ वह मिली है गटर में
वहाँ सैकड़ों किस्सों के सैंकड़ों मुँह
लिखी है जाने कितनी कहानियाँ
उसके सिरहाने-पैताने
उसकी आत्मा में ईश्वर नहीं था
या उसकी आत्मा तक नहीं गया था ईश्वर
वह सिर्फ देह थी, देह के साथ रही
देह लेकर मर गई
मनुष्य होने की आदिम परिभाषा
पर भी पत्थर रख गई ।
</poem>
10 मई, 2001