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03:00, 1 मार्च 2010
'''गीतकार {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category: शैलेन्द्र सिंहगीत]]<poem>छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिएये मुनासिब नहीं आदमी के लिएप्यार से भी ज़रूरी कई काम हैंप्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिए
तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
खुशबू आती रहे दूर से ही सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चाँद मिलता नहीं सबको सँसार में
है दिया ही बहुत रोशनी के लिए
रुक जा रात ठहर जा रे चंदा बीते न मिलन की बेला आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला रुक जा रात ... पहले मिलन की यादें लेकर आई है ये रात सुहानी दोहराते कितनी हसरत से तकती हैं चांद सितारे मेरी तुम्हारी प्रेम कहानीकलियाँ तुम्हेंक्यूँ बहारों को फिर से बुलाते नहींमेरी तुम्हारी प्रेम कहानी रुक जा रात ... कल का डरना काल की चिंता, दो तन एक दुनिया उजड़ ही गई है मन एक हमारेतो क्यादूसरा तुम जहां क्यूँ बसाते नहींजीवन सीमा दिल ना चाहे भी तो साथ संसार के आगे भी आऊंगी मैं संग तुम्हारे आऊंगी मैं संग तुम्हारे रुक जा रात ... रुक जा रात ठहर जा रे चंदा बीते न मिलन चलना पड़ता है सब की बेला आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेलाखुशी के लिएरुक जा रात ...</poem>