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Kavita Kosh से
इस रीछ के बच्चे में था इस नाच का ईजाद ।
जब हमने उठा हाथ, कड़ों को जो हिलाया ।
इस ढब से आखाड़े में लड़ा रीछ का बच्चा ।।१०।।
गह हमने षछाड़ा उसे, गह उसने पछाड़ा ।
गर हम भी न हारे, न हटा रीछ का बच्चा ।।११।।
सब नक़द हुए आके सवा लाख रूपे ढेर ।
जो कहता था हर एक से इस तरह से मुंह मुँह फेर ।
‘‘यारो तो लड़ा देखो ज़रा रीछ का बच्चा’’।।१२।।
ऐसा तो न देखा, न सुना रीछा का बच्चा ।।१३।।
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