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राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं,
::प्रेम रतनाकर हियैं यौं उमगत है ।
त्यौं ही बिरहातप प्रचंड सौं उमंडि अति,
::उरध उसास कौ झकोर यौं जगत है ॥
केवट विचार कौ बिचारौं पचि हारि जात,
::होत गुन-पाल ततकाल नभ-गत है ॥
करत गँभीर धीर लंगर न काज कछू,
::मन कौ जहाज डगि डूबन लगत है ॥11॥
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