भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बार-बार / नीलेश रघुवंशी

30 bytes added, 10:06, 5 मार्च 2010
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
एक बार घर के टूट जाने से
 
तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए
 चिड़ियों की तरह बनाएंगेबनाएँगे
हम घर बार-बार।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,086
edits