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<poem>
इस छोटे शहर की
बड़ी लगने वाली रातमें
जब आती जाती रोशनी के बीच
अँधेरा और घना हुआ है
बेटे, मुझको तुम्हारे लालाट की
प्रशस्ति और आँखों की चमक
याद आई है

कल तुम्हारे जन्मदिन पर
मन होता है सामने रहे
तुम्हारा चन्दन तिलकित भाल
अभी-अभी पहनाये हैं
आशीषों के कवच
सिक्त किया है तुमको प्रार्थनाओं
के जल से
पूर्वजों के पुण्यों से माँगा है
तुम्हारे लिए अभय
सब हुआ, सब होगा
मेरे बेटे,
पर कल आने वाली सोलह फरवरी
फिर फेंक देगी मुझको
अपने अँधेरे में
इस छोटे शहर की बड़ी लगने वाली रात
मे उतरेगा तुम्हारा बचपन
तुम्हारी हँसी, तुम्हारी जिद
और मेरा अजस्र प्यार

और तुम चिमनियों भरे शहर
के धूल-धुएँ से लड़ते
पूरी पृथ्वी के लिए उजाला
बो रहे होगे
तुम्हारे माथे पर हाथ रखने की
इच्छा को प्यार करती हुई
तुम्हें दूर से देखूंगी
क्योंकि तुम्हारे और मेरे बीच
रोटी है ।
</poem>

सोलह फरवरी, १९८५
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