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'''रचनाकार् - आनन्द् बक्षी'''{{KKGlobal}}{{KKFilmSongCategories|वर्ग= बालगीत}}{{KKFilmRachna|रचनाकार= आन्नद बख़्शी}}
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आओ बच्चोआज् तुम्हे एक् आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हू मैहूँ मैंशेर् कि कहानि शेर की कहानी सुनोगेआजा मुन्ना हम .....
मेरे पास् पास आओ मेरे दोस्तों एक् किस्सा दोस्तो एक क़िस्सा सुनोमेरे पास् आओ मेरे दोस्तों एक् किस्सा सुनोक्ई साल् कई साल पहले की ये बात् बात हैबोलो न चुप् कीउ हो गयेभयानक अंधेरी सियाह रात मेंलिये अपनी बन्दूक मैं हाथ मेंघने जंगलों से गुज़रता हुआ कहीं जा रहा थाजा रहा था, नहीं आ रहा था, नहीं जा रहा था
भयानक् अन्धेरी सी हा रात् मेलिये अपनी बन्दूक् मैं हाथ् मेंघने जंगलो से गुजार्ता हु कही जा रहा थाघने जंगलो से गुजार्ता हु कही जा रहा थाजा रहा थानही आ रहा थानही आ रहा थाओफ्फो ओफ़ ओ आगे भी तो बोलो ना
बताता हू हूँ बताता हूहूँनही भूल्ती उफ्फ् नहीं भूलती उफ्फ़ वो जंगल् जंगल की रात्रातमुझे याद् याद है वो थी मंगल् मंगल की रात्रात
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
हनुमान् चालीस पढ्ता हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ
बोलो हनुमान् हनुमान की जय्जयजय् जय् बजरंग् बली कि जय्हाँ बोलो हनुमान् कि जय्जय् हो बजरंग् जय बजरंग बली की जय्जय
घडी घड़ी थी अन्धेरा मगर् सख्त् मगर सख़्त थाकोई दस् दस सवा दस् दस का वक्त् बस वक़्त थालरजता लरज़ता था कोयल् कि कोयल की भी कूक् कूक सेबुरा हाल् हु उस् हाल हुआ उस पे भूख् भूख सेलगा तोड्ने एक् बेरि तोड़ने एक बेरी से बेर्बेरमेरे समने सामने आ गया एक् शेर्एक शेर
कोई घिग्घी बनती नजर् फिर् ग्ईजो घिघ्घी बँधी नज़र फिर गईतो बन्दूक् बन्दूक भी हाथ् हाथ से गिर् ग्ईगिर गईमैने मैं लपका वो झपकामै उपर् , मैं ऊपर वो नीचेवो आगे मै मैं पीछेमै पेड् , मैं पेड़ पे वो पीछेअरे बचाओ अरे बचाओ-२मै डाल् डाल् मैं डाल-डाल वो पात् पात्पात-पातमै मैं पसीना वो बाग् बाग्बाग़-बाग़मै सुर् मेइ मैं सुर में वो ताल् मेइताल मेंये जंगल् पाताल् मेजंगल पाताल में
बचाओ बचाओ
अरे भागो रे भागो
अरे भागो
फिर् क्या हुआ
खुदा फिर क्या हुआ? ख़ुदा की कसम् मजा क़सम मज़ा आ गयामुझे मार् कर् बेशरम् मार कर बेसरम खा गया खा गयालेकिन् आप् ? लेकिन आप तो जिन्दा हैज़िन्दा हैं अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लुहाँ ला ला ला रा ला ला ...........लल्लू
</poem>
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