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|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
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साथी हाथ बढ़ाना
 एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना।उठाना
साथी हाथ बढ़ाना।
हम मेहनत वालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
 सागर ने रास्‍ता रस्‍ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया 
फ़ौलादी हैं सीने अपने, फ़ौलादी हैं बाँहें
 हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें  
साथी हाथ बढ़ाना।
मेहनत अपने लेख की रेखा, मेहनत से क्‍या डरना
 
कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना
 
अपना दुख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
 अपनी मंज़‍िल मंज़िल सच की मंज़‍िलमंज़िल, अपना रास्‍ता नेक साथी हाथ्‍ा हाथ बढ़ाना।
एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
 
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा
 
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत
 एक से एक मिले तो इंसाँइंसां, बस में कर ले किस्‍मत 
साथी हाथ बढ़ाना।
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