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|रचनाकार=जावेद अख़्तर|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
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[[Category:गज़लग़ज़ल]]
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हमारे शौक़ की ये इन्तिहा इन्तहा<ref>हद</ref> थीक़दम रखा रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वोहिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मोहब्बत मैं बचपन में खिलौने तोड़ता थामिरे अंजाम की वो इब्तदा<ref>शुरुआत</ref> थी मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म हैमेरे मिरे अच्छे दिनों की आशना <ref>परिचित</ref> थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>आराम, रोग से मुक्ति</ref> है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
</poem>
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