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{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम <br>हमसे पूछो कैसा आलम होता है <br><br>
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की <br>जब होता है कोई हम-दम हमदम होता है <br><br>
ज़ख़्म तो हम ने हमने इन आँखों से देखे हैं <br>लोगों से सुनते हैं मरहम होता है <br><br>