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[[Category:ग़ज़ल]]
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कोई शायर शाइर बताता है , कोई कहता है पागल भी दीवानामेरा चर्चा हमेशा आपकी महफ़िल महफिल में रहता है.
कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी सहरा, कभी परबतउसी को खोजते हैं सब जो सबके दिल में रहता है वो मालिक है सब उसका है ,वो हर ज़र्रे में मे है ग़ाफ़िल !शामिलवही वो दाता में मिलता को भी देता है वही वो खुद साइल में रहता है. "ख़याल" उससे शिकायत कर जो हल कर दे तेरी मुशकिलकरेगा हल वो क्या मुशकिल जो खुद मुशकिल में रहता है
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