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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता!
न था कुछ तो ख़ुदा थाहुआ जब ग़म से यूँ बेहिस<ref>हैरान</ref>, कुछ न होता तो ख़ुदा होता <br>ग़म क्या सर के कटने का ?डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं गर जुदा तन से, तो क्या होता ज़ानू<brref>घुटनों<br/ref>पर धरा होता
हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का <br>न होता गर जुदा तन से तो ज़ाँनों पर धरा होता <br><br> हुई मुद्दत के "'ग़ालिब" ' मर गया , पर याद आता है <br>वो हर एक इक बात पे पर कहना के यूँ , कि यूं होता तो क्या होता ?<br><br/poem>{{KKMeaning}}