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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़दां अपना
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना <br>मय वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में, यारब बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़दां आज ही हुआ मंज़ूर उनको इम्तहां अपना <br><br>
मय वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में, यारब <br>मंज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते आज ही हुआ मंज़ूर उनको इम्तहां अर्श से उधर होता काश के मकां अपना <br><br>
मंज़र इक बुलंदी पर और दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम बना सकते <br>हँसी में टालेंगे अर्श से उधर होता काश के मकां बारे आशना निकला उनका पासबां अपना <br><br>
दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टालेंगे <br>दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक, ज़ाऊँ उन को दिखला दूँ बारे आशना निकला उनका पासबां उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूंचकां अपना <br><br>
दर्दघिसते-घिसते मिट जाता आप ने अ़बस बदला नंग-ए-दिल लिखूँ कब तक, ज़ाऊँ उन को दिखला दूँ <br>उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूंचकां सिजदा से मेरे संग-ए-आस्तां अपना <br><br>
घिसते-घिसते मिट जाता आप ने अ़बस बदला <br>ता करे न ग़म्माज़ी, कर लिया है दुश्मन को नंग-ए-सिजदा से मेरे संग-ए-आस्तां दोस्त की शिकायत में हम ने हमज़बां अपना <br><br>
ता करे न ग़म्माज़ी, कर लिया है दुश्मन को <br>दोस्त की शिकायत में हम ने हमज़बां अपना <br><br> हम कहाँ के दाना थे, किस हुनर में यकता थे <br>बेसबब हुआ "ग़ालिब" दुश्मन अस्मां अपना<br><br/poem>{{KKMeaning}}
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