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ग्राम / सुमित्रानंदन पंत

2 bytes added, 15:00, 26 अप्रैल 2010
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बृहद् ग्रंथ मानव जीवन का, काल ध्वंस से कवलित,
ग्राम आज है पृष्ठ जनों की करुण कथा का जीवित !
युग युग का इतिहास सभ्यताओं का इसमें संचित,
संस्कृतियों को की ह्रास वृद्धि जन शोषण से रेखांकित ! रेखांकित।
हिस्र हिंस्र विजेताओं, भूपों के आक्रमणों की निर्दय, जीर्ण हस्तलिपि यह नृशंस गृह संघर्षों की निश्चय ! धर्मों का उत्पात, जातियों वर्गों, का उत्पीड़न, इसमें चिर संकलित रूढ़ि, विश्वास , विचार सनातन ! सनातन। चर घर घर के बिखरे पन्नों में नग्न, क्षुधार्त कहानी, जन मन के दयनीय भाव कर सकती प्रकट न वाणी ! वाणी।
मानव दुर्गति की गाथा से ओतप्रोत मर्मांतक
सदियों के अत्याचारों की सूची यह रोमांचक !
मनुष्यत्व के मूलतत्त्व ग्रामों ही में अंतर्हित,
उपादान भावी संस्कृति के भरे यहाँ हैं अविकृत ! अविकृत।
शिक्षा के सत्याभासों से ग्राम नहीं हैं पीड़ित,
जीवन के संस्कार अविद्या-तम में जन के रक्षित !रक्षित।
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