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Kavita Kosh से
और केवल बबूल के फूलों की
महक जाग रही है
तब दूधिया चॉंदनी चाँदनी में
धान से लदी वह लौट रही है
लौट रहे हैं अन्न
बचपन को याद करते
घंटियों की टुनुन-टुनुन
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है
हिल रही हैं
अलगनी में टॅंगी टँगी हुई कन्दीलेंऔर चमक रहा है गॉंव गाँव का कन्धाएक मॉं माँ के कण्ठ से उठ रही है लोरीकि चॉंदी चाँदी के कटोरे में भरा है दूध
और घुल रहा है बताशा
बैलगाड़ी पहुंच पहुँच जाना चाहती है गॉंवगाँवदूध में बताशे के घुलने से पहले.पहले।
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