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{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<Poem>हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी ! अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि सुवाड़वाग्नि से चलोजलो, प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !</poem>