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ज़मीन-2 / एकांत श्रीवास्तव

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जमीन{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<br /Poem>ज़मीनबिक जाने के बाद भी<br />पिता के सपनों में<br />बिछी रही रात भर<br /><br />वह जानना चाहती थी<br />हल के फाल का स्‍वाद<br />चीन्‍हना चाहती थी<br />धॅंवरे बैलों के खुर<br /><br />वह चाहती थी<br />कि उसके सीने में लहलहायें<br />लहलहाएँपिता की बोयी फसलें<br /><br />एक अटूट रिश्‍ते की तरह<br />कभी नहीं टूटना चाहती थी जमीन<br />ज़मीनबिक जाने के बाद भी.<br />भी।<br /poem>
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