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::भारत माता
::ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला-सा आँचल,गंगा जमुना यमुना में आंसू आँसू जल,:मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी,::उदासिनी।
भारतमाता ग्रामवासिनीदैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,अधरों में चिर नीरव रोदन,युग युग के तम से विषण्ण मन,:वह अपने घर में ::प्रवासिनी।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवनतीस कोटि संतान नग्न तन,अधरों में चिर नीरव रोदनअर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,युग-युग के तम से विषण्ण मनवह अपने घर में प्रवासिनीमूढ़,असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,::नत मस्तक :तरु तल निवासिनी!
भारतमाता ग्रामवासिनीस्वर्ण शस्य पर -पदतल लुंठित,धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,::राहु ग्रसित:शरदेन्दु हासिनी।
तीस कोटी संतान नग्न तनचिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,अर्द्धनमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,आनन श्री छाया-क्षुभितशशि उपमित, शोषित निरस्त्र जन::ज्ञान मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धननतमस्तक तरुतल निवासिनी,:गीता प्रकाशिनी!
भारतमाता ग्रामवासिनीसफल आज उसका तप संयम,पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,::जग जननी :जीवन विकासिनी।
स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठितधरती-सा सहिष्णु मन कुंठितक्रन्दन कम्पित अधर मौन स्मितराहु ग्रसित शरदिंदु हासिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरान्कितनमित नयन नभ वाष्पाच्छादितआनन श्री छाया शशि उपमितज्ञानमूढ़ गीता-प्रकाशिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी सफ़ल आज उसका तप संयमपिला अहिंसा स्तन्य सुधोपमहरती जन-मन भय, भव तन भ्रमजग जननी जीवन विकासिनी, भारतमाता ग्रामवासिनीरचनाकाल: जनवरी’ ४०
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