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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=ग्राम्या / सुमित्रानंदन पंत}}<poem>चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
बहु भौतिक साधन, यंत्र यान, वैभव महान,
सेवक हैं विद्युत वाष्प शक्ति; : धन बल नितांत,
फिर क्यों जग में उत्पीड़न? जीवन यों अशांत?
मानव नें पाई देश काल पर जय निश्च्यनिश्चय,
मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय!
भौतिक मद से मानव आत्मा हो गई विजित!
है श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास?
बापू! तुम पर हैं आज लगे जग के लोचन,
तुम खोल नहीं पाओगे जाओगे मानव के बंधन? रचनाकाल: दिसंबर’ ३९</poem>