भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
देखती है
और धरती पर मारती है
लार और हॅंसी हँसी से सना
उसका चेहरा
अभी इतना मुलायम है
कि पूरी धरती
थूक के फुग्गे में उतारे है.है।
अभी सारे मकान
आकाश अभी विरल है दूर
उसके बालों को
धीरे-धीरे हिलाती हवा
फूलों का तमाशा है
वे हॅंसते हँसते हुए
इशारे करते हैं:
दूर-दूरान्तरों से
उत्सुक काफिलेकाफ़िलेधूप में चमकते हुए आऍंगे.आएँगे।
सुंदरता!
जन्म चाहिए
हर चीज चीज़ को एक औरजन्म चाहिए.चाहिए।</poem>