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Kavita Kosh से
:लेन देन के थोथे सपने
दीपक के मंडल में मिलकर
:मँडराते घिर सुख दुख अपने।
कँप कँप उठते लौ के सँग
:मिट्टी खपरे के घर आँगन,
भूल गए लाला अपनी सुधि,
:भूल गया सब व्याज, मूलधन!
सकुची सी परचून किराने की ढेरी