भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल<br>
न खेतों में लहरता जै है किसी का टेसुआ आँचल्<br>
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है<br>
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है<br><br>
Anonymous user