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आस्था / राकेश खंडेलवाल

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है पढ़ी भागवत, गाते गीता रहे<br>
हो गये डूब मानस में रामायणी<br>
वेद,श्रुतियां, ॠचा, उपनिषद में उलझ<br>
अर्थ पाने को हम छटपटाते रहे<br>
धुंध के किन्तु बादल न पल भर छंटे<br>